Saturday, 7 May 2016

मैं , माँ , और ममत्व





ममता की साक्षात मूरत हो तुम,
असंख्य अड़चनों का निवारण हो तुम,
सवालों के भंवर में ग़र खो जाऊँ  मैं ,
माँ, आशा की  एक उज्जवलित किरण हो तुम.

नौ महीने कोख में जो रखा तुमने ,
वो असहनीय पीड़ा, क्या समझ पाऊंगा मैं , 
स्वयं का दर्द छिपा, खुशी हमें दी तुमने ,
वह त्याग और बलिदान, समझने में असमर्थ हूँ मैं

सुबह से शब, एक पैर पड़ खड़े ,
गृहस्थ जीवन में हो तुम पड़े ,
हमारी इच्छाओं को, सर्वथा ऊपर रखकर ,
दिया ख़ुशी हमे , हमारी जिद मानकर |

सुबह-सुबह तुम्हारा, वो  मार कर उठाना ,
रात हुई जो अगर, तो दुलार कर सुलाना ,
देर  हो ना जाये , पहुँचने में विद्यालय मुझे,
फिक्र की ना अपनी नींद की , यह आभास है मुझे

एकटक खड़े , दरवाज़े पर इंतज़ार करना ,
हुई छुट्टी जो विद्यालय में , वो घंटी का बजना ,
विद्यालय से लौटकर  सर्वप्रथम कपड़े बदलवाना ,
अपने कोमल हाथों से , भोजन के दो कौर खिलाना ,
है मुझे याद , वो सभी खट्टी-मीठी बातें,
हूँ खुश आज मैं , याद कर वे सभी सौगातें

परिवर्तित हुआ जो मैं , बालक से युवक में,
एक समझदारी गयी , कोमल से  मेरे मन में,
है मैंने लिया ठान , दुःख दूंगा भटकने तेरे आस-पास ,
हो परिस्थिति कैसी भी , रखूँगा ध्यान मैं बारह मास

नादान हैं वो, जो तेरा कर्ज उतारने की सोचते,
उस दूध  का क्या मूल्य , जो बाजार में ना बिकते ,
मूर्ख हैं वो जो तेरी सेवा ना करते,
आगे बढ़ने की दौड़ में , तुझे पीछे ही छोड़ देते

है तेरी ना कोई इच्छा , सिवाय एक प्रार्थना की,
बच्चे रहे तेरे, सुखी से, समस्त समय जीवन की,
हूँ विश्वास दिलाता मैं तुझे, छोड़ूँगा साथ तेरा,
दाद देगी यह दुनिया, देखकर प्यार तुम्हारा - हमारा

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