ममता की साक्षात
मूरत हो तुम,
असंख्य अड़चनों का निवारण
हो तुम,
सवालों के भंवर
में ग़र खो जाऊँ
मैं ,
माँ, आशा की एक
उज्जवलित किरण हो
तुम.
नौ महीने कोख
में जो रखा तुमने ,
वो असहनीय पीड़ा,
क्या समझ पाऊंगा
मैं ,
स्वयं का दर्द छिपा, खुशी हमें दी तुमने ,
स्वयं का दर्द छिपा, खुशी हमें दी तुमने ,
वह त्याग और
बलिदान, समझने में
असमर्थ हूँ मैं ।
सुबह से शब,
एक पैर पड़ खड़े ,
गृहस्थ जीवन में
हो तुम पड़े
,
हमारी इच्छाओं को, सर्वथा
ऊपर रखकर ,
दिया ख़ुशी हमे
, हमारी जिद मानकर
|
सुबह-सुबह तुम्हारा,
वो मार
कर उठाना ,
रात हुई जो
अगर, तो दुलार
कर सुलाना ,
देर हो
ना जाये , पहुँचने
में विद्यालय मुझे,
फिक्र की ना
अपनी नींद की , यह
आभास है मुझे ।
एकटक खड़े , दरवाज़े पर इंतज़ार करना ,
एकटक खड़े , दरवाज़े पर इंतज़ार करना ,
हुई छुट्टी जो
विद्यालय में , वो
घंटी का बजना
,
विद्यालय से लौटकर सर्वप्रथम
कपड़े बदलवाना ,
अपने कोमल हाथों
से , भोजन के दो कौर
खिलाना ,
है मुझे याद
, वो सभी खट्टी-मीठी बातें,
हूँ खुश आज
मैं , याद कर वे सभी
सौगातें ।
परिवर्तित हुआ जो
मैं , बालक से युवक में,
एक समझदारी आ गयी , कोमल से
मेरे
मन में,
है मैंने लिया
ठान , दुःख न दूंगा भटकने
तेरे आस-पास ,
हो परिस्थिति कैसी भी
, रखूँगा ध्यान मैं
बारह मास ।
नादान हैं वो,
जो तेरा कर्ज
उतारने की सोचते,
उस दूध
का क्या मूल्य
, जो बाजार में
ना बिकते ,
मूर्ख हैं वो
जो तेरी सेवा
ना करते,
आगे बढ़ने की
दौड़ में , तुझे
पीछे ही छोड़ देते ।
है तेरी ना
कोई इच्छा , सिवाय
एक प्रार्थना की,
बच्चे रहे तेरे,
सुखी से, समस्त
समय जीवन की,
हूँ विश्वास दिलाता मैं
तुझे, छोड़ूँगा न
साथ तेरा,
दाद देगी यह
दुनिया, देखकर प्यार
तुम्हारा - हमारा ।
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