Sunday, 13 December 2015

"उड़ना चाहता हूँ मैं"

खुले आसमाँ के आँचल तले,
स्वच्छंद विचरना चाहता हूँ मैं,
सहनशील धरा के ऊपर चले,
मुक्त हो उड़ना चाहता हूँ मैं |


आशाओं के "कोमल पंख" लगाकर,
समुद्र तट पर विचरना चाहता हूँ मैं,
मधुर संगीत की सुरीली तानो की भांति,
शब्द बन मुख से निकलना चाहता हूँ मैं|



हिमाच्छादित हिमालय के भांति,
इच्छाओं को श्वेत करना चाहता हूँ मैं,
काली निशा के भयावह अंधकार में,
आशा की नयी रोशनी जलाना चाहता मैं|

नीले गगन के आलिंगन में रहकर,
प्रकृति की गोद में सोना चाहता हूँ मैं|
पशु - पक्षी और मनुष्य रहे प्यार से ,
एक सपना ऐसा सुनहरा देखना चाहता हूँ मैं|

स्वच्छ जल की चंचलता के भांति,
विश्व भ्रमण करना चाहता हूँ मैं|
समस्त दिशाओं में प्यार के सन्देश फैलाकर,
इच्छाओं के पंख लगा उड़ना चाहता हूँ मैं|

- AlbMa CuNiG (Rohit Gupta)